जय श्री राम !!! आज के लेख में हम श्री राम जन्मभूमि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देंगे। इस लेख में हम मंदिर का इतिहास, अयोध्या विवाद (मंदिर से जुड़े केस), साक्ष्य, बाबरी मस्जिद के बारे में जानेंगे।
हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने श्री रामलला के दर्शन किये और पूरी विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की और 3 चाँदी के सिंहासन दान किये। नए सिंहासन पर भगवान भरत, भगवान शत्रुघन और भगवान लक्ष्मण को विराजमान किया गया। उन्होंने प्रसिद्ध सिद्ध पीठ हनुमान गढ़ी पहुँचकर भी पूजा की।
बहुत समय की प्रतीक्षा और बलिदानों के बाद मंदिर का निर्माण कार्य 5 अगस्त से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा भूमि पूजन करने के बाद शुरू होगा।
भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम का जन्म सरयू नदी के किनारे अयोध्या में हुआ था। अयोध्या जो आज के समय में उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है। इसी जिले में बनने जा रहा है भगवान राम का भव्य और दिव्य मंदिर। मंदिर का design 1988 में बनाया गया था। मगर अब जरूरतों और भव्यता को देखते हुए मंदिर में बदलाव किये गए है। मंदिर वास्तु शास्त्र का अनुसार बनाया जायेगा।
श्री राम मंदिर के कुछ तथ्य
- राम मंदिर का शिखर 161 फ़ीट ऊँचा होगा।
- भगवान राम का मंदिर 360 फ़ीट लंबा और 235 फ़ीट चौड़ा होगा।
- मंदिर में अब 3 नहीं 5 शिखर बनाने का निश्चय किया गया है।
- मंदिर में प्रवेश करने के लिए 5 द्वार बनाए जायेंगे।
- भगवान राम का मंदिर नागर शैली में बनाने का तय किया गया है।
- इस मंदिर का निर्माण एल एंड टी ( larson and turbo ) कंपनी के द्वारा किया जायेगा।
- मंदिर में लगने वाले पत्थर और टाइल्स का काम सोमपुरा मार्बल्स को मिला है।
- यह मंदिर 3 मंजिला बनाया जायेगा।
- इसमें 318 खंभे होंगे और हर तल पर 106 खंभे बनाये जाएंगे।
- मंदिर परिसर में माँ सीता का मंदिर भी बनाया जायेगा।
- मंदिर का भूतल यानी groundfloor पर सिंह द्वार, गर्भ गृह, नृत्य मंडप, रंग मण्डप और गुड मंडप बनाया जायेगा।
- प्रथमतल यानी 1st floor पर श्री राम दरबार बनेगा जिसमें बहुत सी मूर्तियों को स्थान दिया जायेगा।
- दूसरे तल को फ़िलहाल खाली रखने का तय हुआ है।
- मंदिर में एक संग्रहालय भी बनाया जायेगा जिसमे पुरातात्त्विक विभाग को जो अवशेष प्राप्त हुए है उन्हें भी प्रदर्शित किया जाएगा।
- सोमपुरा परिवार पीढ़ियों से श्री राम मंदिर के कार्य में लगा हुआ है। मंदिर के मुख्य architect निखिल सोमपुरा है।
5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे श्री राम जन्मभूमि मंदिर का भूमि पूजन
भूमि पूजन दोपहर में अभिजीत मुहूर्त में करने का तय किया गया है। अभिजीत मुहूर्त अत्यंत शुभ मुहूर्त माने जाते है और यह रोज सूर्योदय के हिसाब अपना समय बदलते है यानी अभिजीत मुहूर्त रोज होते है बस इनका समय बदलता रहता है।
इसमें 32 सेकंड का खास महत्व है, उन्ही 32 सेकंड में प्रधानमंत्री 5 शिलाओं को नींव में स्थापित करेंगे।
भूमि पूजन का समय अभिजीत मुहूर्त में 12 बजकर 15 मिनट 15 सेकंड से ठीक 32 सेकंड में पहली ईट रखना बेहद जरूरी है। नींव में 40 किलों की चाँदी की ईट रखी जाएगी। टाइम कैप्सूल भी रखा जा सकता है ।
टाइम कैप्सूल क्या होता है ?
टाइम कैप्सूल विशेष धातु का उपयोग करके बनाये जाते है। यह हर मौसम की मार झेलने में सक्षम होते है। इन्हे गहराई में मिटटी के नीचे दबाया जाता है जिससे इनके अंदर रखी गयी जानकारी हज़ारों वर्षों तक सुरक्षित रहती है।
इस को दबाने का सिर्फ एक ही मकसद होता है। इतिहास को संजोकर रखना और जब भविष्य में उन्हें खोला जाए तो पता चले कि उस वक़्त क्या स्थिति थी। लोग कैसे रहते थे, क्या करते थे, कौन सी technology का use किया जाता था आदि।
आपको जानकर खुशी होगी कि भूतल पर लगाए जाने वाले पत्थरों को तराशा जा चुका है।

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अयोध्या विवाद सर्वोच्च न्यायलय के इतिहास में दूसरा सबसे लम्बा चलने वाला केस था। इस केस की hearing या सुनवाई लगातार 40 दिनों तक चली थी।
यह विवाद बेहद पेचीदा और लम्बा है लेकिन हम आपको बहुत सरल भाषा में बिलकुल कहानी की तरह समझाएँगे।
तो कहानी की शुरुआत होती है मतलब विवाद की शुरुआत है लगभग 500 वर्ष पहले, सन 1528- 1529 से।
जैसा की आपको पता होगा कि 1526 में भारत में मुग़ल साम्राज्य की स्थापना बाबर ने की थी। वहाँ के लोगों के अनुसार, उसी के 2-3 साल बाद मुग़ल बादशाह बाबर के कमांडर मीर बाकी ने मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद का निर्माण करवा दिया और उसका नाम “बाबरी मस्जिद” रख दिया गया।
कई सौ सालों तक हिन्दू धर्म के लोग मंदिर के बाहर श्री राम चबूतरे पर पूजा करते थे जबकि मुस्लिम धर्म के लोग अंदर जाकर इबादत करते थे।
सन 1853 – 1859 से शुरू हुआ अयोध्या विवाद
मंदिर और मस्जिद के control को लेकर सन 1853 – 1859 के बीच दंगे हुए जिसको रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार को बीच में आना पड़ा। ब्रिटिश सरकार ने जमीन को दो हिस्सों में बाँट दिया – अंदर का मुख्य भाग जहाँ मस्जिद बनी थी और बाहर वाला भाग जहाँ हिन्दू पूजा करते थे ।
अंदर वाला हिस्सा मुस्लिमो को दिया गया जहाँ वे इबादत करते थे और बाहर की जगह हिन्दुओं को दी गयी जहाँ पूजा की जाती थी और चारों तरफ fencing या बाड़ लगा दी गयी।
1885 – यही वह वर्ष है जब पहली बार यह विवाद कोर्ट जाता है। महंत रघुबीर दास श्री राम चबूतरे पर छोटा सा मंदिर बनाने की इजाजत लेने के लिए फैज़ाबाद के जिला अदालत में याचिका दर्ज़ करते है किन्तु उनकी याचिका ख़ारिज कर दी जाती है।
आज़ादी के बाद क्या हुआ ?
22/23 दिसंबर 1949 – यह तिथि बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन श्री रामलला की मूर्ति अंदर वाले हिस्से में रख दी गयी और खबरें फैलाई गयी कि श्री रामलला की मूर्ति वहाँ प्रकट हुई है। लेकिन मुस्लिम धर्म के लोग शिकायत करने लगे और मूर्तियों को हटाने के लिए कहा। इसी वजह से माहौल फिर गरमाने लगा।
जनवरी 1950 – महंत रामचंद्र दास जी ने कहा कि अब तो अंदर मूर्तियाँ प्रकट हो चुकी है। हिन्दुओं को अंदर जाकर पूजा करने दी जाए। किन्तु अदालत ने मना कर दिया।
ऐसा ही एक केस गोपाल सिमला विशारद ने भी किया था जिसमें मूर्तियों को वही रखे रहने देने की और उनकी पूजा करने की मांग की गयी।
तो स्थिति को संभालने के लिए जिला मजिस्ट्रेट के. के नायर ने विवादित जमीन को पूरी तरह बंद कर दिया। अब न तो हिन्दू अंदर जा सकते थे और न ही मुस्लिम।
अब धीरे धीरे बहुत सारे केस दर्ज होने लगते है जिन्हे हम आगे देखेंगे …
1959 – अगला केस निरमोही अखाड़ा द्वारा किया गया, जिसमे उनकी मांग थी कि मंदिर का स्वामित्व उन्हें दे दिया जाए।
1961 – इस वर्ष एक केस ओर दर्ज हुआ जो यूपी सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड द्वारा किया गया था , इन्होने मांग की थी कि विवादित जमीन का स्वामित्व हमें दे दिया जाए। मस्जिद में जो मूर्तियाँ रखी गयी है उन्हें हटाया जाए और हिन्दुओं के द्वारा पूजा करने पर रोक लगायी जाए।
20 – 25 साल तक मामला ऐसे ही शांत चलता रहा। उसके बाद इसमें राजनीति शुरू हो गयी।
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अयोध्या विवाद में हुई राजनीति की शुरुआत
1980 – विश्व हिन्दू परिषद द्वारा धार्मिक सभा बुलाई गयी थी जिसमे लाल कृष्ण आडवाणी जैसे नेता भी शामिल हुए थे और सभा में भगवान राम की जन्मभूमि पर ही श्री राम मंदिर के बनने की बात पर जोर दिया गया था। तभी से यह मुद्दा राजनीति से जुड़ गया।
इस समय तक बहुत सारे केस दर्ज कराए जा चुके थे जिनके अब नतीजे आने शुरू हो चुके थे। इन्हीं नतीजों में से एक नतीजा फैज़ाबाद की अदालत का भी था।
1 फरवरी 1986 – इस दिन फैज़ाबाद की अदालत के नतीजा आता है कि हिन्दुओं को अंदर पूजा करने दी जाए और नतीजा आते ही एक घंटे में विवादित जमीन का ताला खोल दिया गया। ताले खुलने का पूरा कार्यक्रम TV पर भी ब्रॉडकास्ट किया गया था।
ताले खुलने और हिन्दुओं को प्रवेश की इजाजत मिलने से मुस्लिम वर्ग के लोग खुश नहीं थे और जगह जगह विरोध शुरू हो गए और एक समिति का गठन किया गया जिसका नाम “बाबरी मस्जिद एक्शन समिति” रखा गया।
1989 – इस वर्ष एक केस और किया गया “श्री रामलला विराजमान” के नाम से, जिसमे जमीन के स्वामित्व की मांग की गयी। इस समय स्थिति फिर गरमाने लगी थी।
सभी याचिकाएं मिला दी गयी
14 अगस्त 1989 – इस दिन इलाहबाद हाई कोर्ट की तरफ से एक निर्णय आता है कि सभी याचिकाओं को मिला कर एक केस के रूप में देखा जायेगा और इसका फैसला लिया जाएगा किन्तु तब तक उस क्षेत्र या जमीन पर ताला लगा रहेगा। न कोई हिन्दू अंदर जाकर पूजा कर सकता है, न ही कोई मुस्लिम जाकर इबादत कर सकता है।
नवंबर 1989 में श्री राम जन्मभूमि मंदिर का शिलान्यास किया गया। जिसके बाद दंगे भड़क गए और करीब 1000 लोगों की मृत्यु हो गयी।
1990 – इसी बीच श्री लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकालते है। स्थिति बहुत गंभीर हो जाती है, जगह – जगह दंगे शुरू हो जाते है। जिस कारण 23 अक्टूबर 1990 को श्री लाल कृष्ण अडवाणी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया जाता है।
30 अक्टूबर 1990 – इस दिन यह रथयात्रा अयोध्या पहुँचनी थी किन्तु रथयात्रा को बिहार में ही रोक देने के कारण वहाँ पहुंच नहीं पायी। रथयात्रा के लिए अयोध्या में karsevak इकट्ठे हो रखे थे। जिनपर अयोध्या में गोली चलवा दी गई और बहुत से लोग मारे गए।
अयोध्या विवाद बना धार्मिक, न्यायिक और राजनीतिक मुद्दा
इस समय तक अयोध्या विवाद धार्मिक, न्यायिक और राजनीतिक मुद्दा बन चुका था। लोगों से श्री राम मंदिर के बनने के लिए योगदान करने के लिए कहा गया। इसी समय बजरंग दल की भी स्थापना हुई जिसका कार्य था – रथयात्रा को सुरक्षा देना।
Karseva – यह शब्द आपने पहले भी सुना होगा। इसका मतलब होता है कि मंदिर के लिए लोग योगदान करना या अपनी सेवा देना। जैसे मंदिर के लिए ईटे भेजना, पत्थरों को तराशना आदि। इस समय केस कोर्ट में था।
शिला पूजन – लोग पूरे देश से ईटों पर “श्री राम” लिखकर अयोध्या भेजने लगे। कि जब भी मंदिर बनेगा इन ईटों का इस्तेमाल किया जाएगा। तो आज के समय में जो इतनी सारी ईटे हम देखते है वह 1980 – 1990 के दशक से वहाँ इकट्ठी हो रही है। जिनका इस्तेमाल अब मंदिर बनाने में किया जाएगा। 😊😊
अब श्री लाल कृष्ण आडवाणी बीजेपी के सीनियर लीडर थे तो उनके जेल जाने के विरोध में बीजेपी श्री वी.पी सिंह की सरकार से अपना support वापिस ले लेती है।
1991 में फिर से दंगे भड़क जाते है और दंगो को control करने के लिए श्री कल्याण सिंह की सरकार भी पूरे क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लेती है। अब आता है इस विवाद से जुड़ा सबसे मुख्य दिन…
6 दिसंबर 1992 – इस दिन करीब 2 लाख कारसेवकों ने मिलकर बाबरी मस्जिद को ढहा दिया और उसकी जगह अस्थायी मंदिर का निर्माण कर दिया गया। इस घटना के बाद फिर से पूरे भारत में दंगे भड़क उठे।
16 दिसंबर 1992 – इस दिन एक समिति गठित की गयी जिसका नाम था ” Liberhen committee” इस समिति का काम था कि वह जांच करे कि बाबरी मस्जिद के ढहाने के पीछे क्या कारन थे या क्या घटनाक्रम था इत्यादि।
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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की अयोध्या विवाद में Entry
अप्रैल 2002 में विवादित जमीन पर मालिकाना हक़ decide करने के लिए इलाहबाद हाईकोर्ट ने 3 जजों की बेंच का गठन किया। जिसमे 3 जजों को चुना गया जिनके नाम जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस.यू खान व जस्टिस डी. वी शर्मा थे।
इस बेंच ने पुरातात्विक विभाग को खुदाई करके जो भी अवशेष मिले उनके behalf पर एक रिपोर्ट सबमिट करे। रिपोर्ट में लिखा था कि बारहवीं सदी में यहाँ एक मंदिर था जबकि सन 1528 में यहाँ एक मस्जिद था।
वहाँ रहने वाले लोगो के अनुसार मंदिर को तोड़कर वहाँ मस्जिद का निर्माण किया गया था। पुरातात्विक विभाग की रिपोर्ट्स के अनुसार वहाँ उन्हें pillars मिले है जिनकर नक्काशी हो रखी है। pillars पर कलश, हिन्दू देवी देवताओं से जुड़े चित्र मिले है जो साफ़ – साफ़ किसी मंदिर के होने का इशारा करते है।
उन्होंने कहा कि यहाँ जो मंदिर बना था वह typical north Indian मंदिर रहा होगा। यह सभी मस्जिद से पुराना है यह भी उस रिपोर्ट में कहा गया।
वहाँ एक कब्र भी मिली थी जिसपर सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने सवाल भी उठाया। तो ASI की रिपोर्ट भी बहुत विवादित रही है। अलग अलग इतिहासकार इसका अपने हिसाब से मतलब भी बताते है। ASI ने अपनी रिपोर्ट में कही भी वह श्री राम जन्मभूमि या मंदिर होने का दावा नहीं किया। उन्होंने कहा कि यहाँ पहले पूजा अर्चना तो की जाती थी।
हाई कोर्ट के द्वारा विवादित जमीन का बँटवारा
30 दिसंबर 2010 – इस दिन हाई कोर्ट की तरफ से बहुत बड़ा judgement आया। 2:1 की majority के हिसाब से यह तय किया गया कि जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जाएगा। जहाँ अस्थायी मंदिर बनाया गया था। वह हिस्सा श्री राम लला विराजमान को, दूसरा हिस्सा जिसमे सीता माता की रसोई , श्री राम चबूतरा और भंडारा यह हिस्सा निरमोही अखाड़ा को मिला जबकि बाकी का हिस्सा सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को दिया गया।
लेकिन 9 मई 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस decision पर रोक लगा दी।
फरवरी 2016 में श्री राम मंदिर निर्माण के लिए श्री सुब्रमणियम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में केस दर्ज किया।
मार्च 2017 में चीफ जस्टिस जे.एस खेहर ने विवाद को कोर्ट के बाहर ही सुलझाने की सलाह दी।
जनवरी 2017 तक सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ कुल 32 अपील भेजी। तो कोर्ट ने कहा कि इस केस की सुनवाई जनवरी 2019 से शुरू होगी।
इस सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक ओर बेंच का गठन किया जिसमें जस्टिस शरद अरविन्द बोबडे, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस अब्दुल नाज़ीर।
8 मार्च 2019 – इस दिन सुप्रीम कोर्ट ने अपनी तरफ से 3 लोगो की एक mediation panel गठित की। जिसमें श्री रवि शंकर, रिटायर्ड जज FMI kalifulla, सीनियर एडवोकेट श्रीराम पंचू जी थे।
मई 2019 में mediation panel अपनी रिपोर्ट सबमिट करती है। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन की सुनवाई शुरू होती है। जो 6 अगस्त से 14 अक्टूबर तक चलती है। इस सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को रिज़र्व कर लिया।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट उन्हें moulding of relief सबमिट करने के लिए करती है।
Moulding Of Relief – इसका मतलब होता है कि जो भी आपकी माँग है अगर वो आपको न मिले तो उसके बदले आप क्या लोगे।
इस केस में सुशील कुमार जैन निरमोही अखाड़ा का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को राजीव धवन जबकि श्री रामलला विराजमान का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
निरमोही अखाड़ा | सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड | श्री राम लला विराजमान |
1934 से जो अंदर वाला इलाका है इसका पूरा मालिकाना हक़ निरमोही अखाड़ा को मिलना चाहिए। मगर इनके पास इससे जुड़े कोई कागजात नहीं थे जो ये बता सके कि इस पूरी जमीन का मालिकाना हक़ इनके पास है। |
इनके अनुसार दिसम्बर 1949 में इस जगह मस्जिद था और सिर्फ इसी तथ्य के behalf पर फैसला होना चाहिए। इसी समय वहाँ श्री राम की मूर्ति भी रखी गयी थी जो की गैर क़ानूनी था। श्री राम चबूतरे पर भगवान राम का जन्म हुआ था और अगर हिन्दू वहाँ पूजा करते है तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन अंदर वाली जगह उन्हें ही मिलनी चहिए।
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इन्होंने कहा कि यहाँ हमेशा से श्री राम का मंदिर ही था। जिसे तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गयी थी। 1949 से वहाँ पर हमारा अधिकार है। उन्होंने भारतीय पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट पर खास जोर देते हुए कहा कि यहाँ पहले श्री राम जन्मभूमि मंदिर था। और जो pillars पाए गए है उसमे भी हिन्दू मंदिरो से जुड़े साक्ष्य प्राप्त हुए है। |
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सभी पक्षों की दलीले सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ कही सुनी बातों और भारतीय पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट के behalf पर किसी भी जमीन का मालिकाना हक़ तय नहीं किया जा सकता। जमीन का मालिकाना हक़ कानूनी सिद्धांतो और साक्ष्य के अनुसार किया जाता है।
साक्ष्य के अनुसार वहाँ मस्जिद होते हुए भी हिन्दुओं की पूजा करने पर कभी रोक टोक नहीं की गयी। और इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को गलत ठहराया जिसमे इलाहबाद हाई कोर्ट ने मंदिर परिसर को तीन हिस्सों में बाँटने का फैसला लिया था।
बहुत सारे साक्ष्य और तथ्य के अनुसार हिन्दू श्री राम चबूतरे पर बहुत वर्षो से पूजा करते आ रहे है जिस कारण उनका वहाँ control स्थापित होता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि 23 दिसम्बर 1949 से मुस्लिमों की नमाज़ अदा करने पर जो रोक लगाई गई है।
जिससे उनकी 400 साल पुरानी मस्जिद में नमाज़ अदा ना कर पाने से उनका Right to Worship का उल्लंघन हुआ है। इसलिए अनुछेद 142 का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि श्री राम लला विराजमान को 2.77 एकड़ की जमीन दी जाएगी।
जबकि केंद्र सरकार या राज्य सरकार के द्वारा सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को 5 एकड़ की जमीन अयोध्या में ही दी जायेगी और दोनों पक्षों को एक ही दिन जमीन दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला दोनों ही पक्षों ने बहुत ही अच्छी तरह माना, जिसकी जितनी तारीफ की जाए कम है।
हम आशा करते है कि श्री राम जन्मभूमि के बारे में आपको कुछ नया जानने को मिला होगा और यह पोस्ट आपको पसंद आयी होगी।